अनूपपुर। जनपद पंचायत जैतहरी अंतर्गत ग्राम केकरपानी में निवास करने वाली एक हाथ एवं एक पैर से दिव्यांग महिला गोमती बाई की शादी उसके माता पिता ने कर दी, लेकिन कुछ दिनो बाद उसके पति ने उसे छोड दिया। वहीं माता-पिता की गरीबी तथा अपने शारीरिक असमर्थता पर उसने समाज में अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगी, वहीं जिसके बाद से दिव्यांग महिला ने अपने ही टोले के कुछ महिलाओ को एकत्रित कर आजीविका मिशन अंतर्गत महिला बचत स्व-सहायता समूह का गठन किया एवं समूह के सदस्यों ने गोमती को सर्व सम्मति से अपने समूह की पुस्तक लिखने का कार्य भी सौपा गया। जिसके बाद गोमती ने आरसेटी के माध्यम से 21 दिवसीय सिलाई प्रशिक्षण लिया एवं प्रशिक्षण उपरांत समूह से २० हजार का ऋण लेकर अपनी सिलाई की दुकान डाली एवं दो सिलाई मशीन रखी। वहीं दिव्यांग होने पर उसने सिलाई मशीन में इलेक्ट्रानिक बटन लगवाया जिससे वह आसानी से कार्य कर सके और कुछ ही दिनो बाद वह गांव की महिलाओं को भी सिलाई का प्रशिक्षण देने का कार्य भी करने लगी। जिसके कारण आज उसकी आमदनी प्रतिदिन औसतन 400 रूपए तथा ग्राम संगठन मे पुस्तक संचालन के कार्य पर उसे 500 रूपए मानदेय भी प्राप्त होता है। वहीं गोमती बाई आज अपनी मेहनत से गरीबी को दूर करते हुए दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक बनी हुई है। उसकी मेहनत व वर्तमान स्थिति को देखते हुए ससुराल में भी उसे स्थान मिलने लगा है।
दिव्यांग महिला गोमती समूह से जुड बदली अपनी जिंदगी
दिव्यांग महिला गोमती समूह से जुड बदली अपनी जिंदगी
अनूपपुर। जनपद पंचायत जैतहरी अंतर्गत ग्राम केकरपानी में निवास करने वाली एक हाथ एवं एक पैर से दिव्यांग महिला गोमती बाई की शादी उसके माता पिता ने कर दी, लेकिन कुछ दिनो बाद उसके पति ने उसे छोड दिया। वहीं माता-पिता की गरीबी तथा अपने शारीरिक असमर्थता पर उसने समाज में अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगी, वहीं जिसके बाद से दिव्यांग महिला ने अपने ही टोले के कुछ महिलाओ को एकत्रित कर आजीविका मिशन अंतर्गत महिला बचत स्व-सहायता समूह का गठन किया एवं समूह के सदस्यों ने गोमती को सर्व सम्मति से अपने समूह की पुस्तक लिखने का कार्य भी सौपा गया। जिसके बाद गोमती ने आरसेटी के माध्यम से 21 दिवसीय सिलाई प्रशिक्षण लिया एवं प्रशिक्षण उपरांत समूह से २० हजार का ऋण लेकर अपनी सिलाई की दुकान डाली एवं दो सिलाई मशीन रखी। वहीं दिव्यांग होने पर उसने सिलाई मशीन में इलेक्ट्रानिक बटन लगवाया जिससे वह आसानी से कार्य कर सके और कुछ ही दिनो बाद वह गांव की महिलाओं को भी सिलाई का प्रशिक्षण देने का कार्य भी करने लगी। जिसके कारण आज उसकी आमदनी प्रतिदिन औसतन 400 रूपए तथा ग्राम संगठन मे पुस्तक संचालन के कार्य पर उसे 500 रूपए मानदेय भी प्राप्त होता है। वहीं गोमती बाई आज अपनी मेहनत से गरीबी को दूर करते हुए दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक बनी हुई है। उसकी मेहनत व वर्तमान स्थिति को देखते हुए ससुराल में भी उसे स्थान मिलने लगा है।
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