रंग-रोगन से छिपाई जर्जरता, मरीजों की जान से खिलवाड़, जिम्मेदारों पर उठे सवाल
अनूपपुर। विकासखंड कोतमा अंतर्गत आयुष्मान आरोग्य मंदिर बदरा में सोमवार 18 अगस्त की सुबह लगभग 10 बजे बड़ा हादसा होते-होते टल गया। कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर (सीएचओ) द्वारा गर्भवती महिला की जांच के दौरान अचानक एएनसी कक्ष की छत का भारी प्लास्टर एएनसी टेबल पर आ गिरा। इस हादसे में गर्भवती महिला बीनू तांबे पति सुनील तांबे निवासी बीमा ग्राम तो सुरक्षित बच गईं, लेकिन उनके पति सुनील तांबे को हल्की चोटे आई है, जिसके बाद सीएचओ उमा साहू ने प्राथमिक उपचार किया।
जर्जर भवन में चल रहा स्वास्थ्य केंद्र
गौरतलब है कि बदरा का यह आयुष्मान आरोग्य मंदिर वर्षों से जर्जर भवन में संचालित हो रहा है। बावजूद इसके स्वास्थ्य विभाग और जिम्मेदार अधिकारी इसे एनक्यूएएस क्वालिटी सर्टिफिकेशन दिलाने में सफल हो गए। जर्जर भवन को महज पुताई-पालिश कर चमका दिया गया और निरीक्षण टीम को गुमराह कर दिया गया। अप्रैल माह में यह केंद्र एनक्यूएएस में क्वालिफाइड घोषित किया गया था, लेकिन पहली ही बारिश ने सारी पोल खोल दी। डिलीवरी प्वाइंट होने के बावजूद इस जर्जर भवन में प्रसव सेवाएं दिया जाना महिलाओं और शिशुओं के जीवन को सीधा खतरे में डालना जैसा है।
पहले भी हो चुके हैं हादसे
जानकारी के अनुसार कुछ दिन पहले ही एक तेज रफ्तार हाइवा वाहन अस्पताल की दीवार से टकराकर एएनसी कक्ष और लेबर रूम को क्षतिग्रस्त कर चुका है। वहीं, ओपीडी कक्ष का छज्जा पूरी तरह टूटा हुआ है। हर कक्ष की दीवार और छत की प्लास्टर धीरे-धीरे गिर रहा है। बरसात में अस्पताल में पानी भरने और प्लास्टर गिरने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अंजान बने बैठे हुए है।
जिम्मेदारों की लापरवाही
घटना की सूचना मिलते ही बीएमओ डॉ. के.एल. दीवान मौके पर पहुंचे,
लेकिन उन्होंने महज मलबा हटाने के निर्देश देकर इतिश्री कर ली।
न तो किसी तकनीकी जांच की बात कही गई और न ही भवन को असुरक्षित घोषित किया गया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि जर्जर भवन को रंग-रोगन कर फाइलों में सब ठीक दिखाना, अधिकारियों की गंभीर लापरवाही है। आज बड़ा हादसा टला है, लेकिन कल किसी की जान भी जा सकती है।
3810 लोगों की जान जोखिम पर
बदरा ग्राम पंचायत की आबादी 3810 है।
यहां मरीजों को प्राथमिक उपचार से लेकर प्रसव जैसी सुविधाएं इसी जर्जर भवन में दी
जाती हैं। गर्भवती महिलाएं भवन की हालत देखकर भयभीत हो जाती हैं और कई बार प्रसव
सेवाओं से इंकार कर देती हैं। बावजूद इसके जिला और ब्लॉक स्तर के अधिकारी इस स्थिति
की अनदेखी कर रहे हैं। ग्रामीणों और कर्मचारियों ने बार-बार सूचना दिये जाने के
बावजूद सीएमएचओं ने भवन को असुरक्षित मानने के बजाय उसी में सेवाएं चालू रखीं है। जिसके
कारण गर्भवती महिलाओं सहित उपचार कराने वाले मरीजों, कम्यूनिटी हेल्थ ऑफिसर तथा हाउसकीपिंग
रोज मौत के साये में काम कर रहे हैं, लेकिन
सीएमएचओं ने कभी उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दिया।



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