जिला कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर टिकी सबकी नजरें, सीनियर बनाम यूथ ब्रिगेड में रस्साकशी
अनूपपुर। कांग्रेस का बहुप्रचारित संगठन
सृजन अभियान क्या वाकई सृजन कर पाएगा या फिर
आपसी खींचतान और गुटबाजी के दलदल में ही उलझ कर रह जाएगा? अनूपपुर में वर्तमान कांग्रेस की स्थिति और हालिया
गतिविधियाँ यही सवाल खड़ा कर रही हैं। महाराष्ट्र विधान परिषद सदस्य और संगठन सृजन
पर्यवेक्षक अशोक अर्जुनराव जगताप का दौरा जिला
राजनीति की असल तस्वीर सामने लाने वाला रहा, लेकिन जो
उन्होंने देखा, सुना और परखा वह संघठन सृजन नहीं बल्कि संघर्ष
सृजन ज्यादा दिखा। कार्यकर्ताओं में समर्पण से ज़्यादा प्रतिस्पर्धा और
संगठन से ज्यादा स्वयं के पद की चिंता नजर आई। नेता से ज़्यादा दावेदार मौजूद थे, जो सामुहिक
उद्देश्य के बिना अपनी-अपनी उपलब्धियों की फेहरिस्त लिए संगठन की सीढ़ी चढ़ना
चाहते थे। जगताप की रिपोर्ट भले ही फिलहाल बंद लिफाफे में हो, लेकिन जमीनी हकीकत
ने यह बता दिया कि कांग्रेस को सिर्फ पदाधिकारी नहीं, एकजुट सेनापति
चाहिए। जिला अध्यक्ष की कुर्सी के चारों ओर खींचतान का जो घेरा बना है, वह न सिर्फ सृजन
अभियान को चुनौती देता है बल्कि पार्टी की भविष्य की दिशा पर भी सवाल उठाता है।
हर कोई बनना चाहता है जिलाध्यक्ष, लेकिन कांग्रेस कैसे होगी एक?
संगठन को मजबूत करने आए पर्यवेक्षक
जगताप के सामने दावेदारों
की कतार थी।
हर कोई अपनी उपलब्धियों की झोली लेकर आया और अपना पक्ष जमकर रखा। लेकिन संगठन
निर्माण के इस अभियान में पार्टी
हित गौण और पद की लालसा प्रधान दिखी। सभी चाहते हैं कमान, लेकिन साथ खड़े होने की सोच किसी में नहीं। एकजुटता
की तलाश करने पहुंचे पर्यवेक्षक को बिखराव का मैदान मिला। पार्टी के भीतर अंदरूनी
कलह, खींचतान
और गुटबाज़ी की दरारें साफ़ झलक रहीं थीं।
जहाँ किसी को अपने पुराने अनुभव का भरोसा था,
वहीं कुछ युवा चेहरे परिवर्तन का नारा
लेकर आए थे। पर सवाल ये है कि क्या कांग्रेस के ये दावेदार संगठन के लिए सोच रहे
हैं या सिर्फ अपनी कुर्सी के लिए लड़ रहे हैं?
जिस समय पार्टी को एकजुट होकर सशक्त विपक्ष बनने की जरूरत है,
उस वक़्त स्थानीय नेतृत्व स्वार्थों में
उलझा नजर र आया। ऐसे
में पर्यवेक्षक जगताप की यह चुनौती और भी कठिन हो गई है कि वह सच्चे सिपाही की
पहचान करें या सिर्फ मुखौटे देखें।
कांग्रेस के नाम पर कांग्रेस में ही मंथन
प्रभारी जगताप ने दो दौरों में कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों, वकीलों, सामाजिक संगठनों और पत्रकारों से संवाद कर स्थिति का आंकलन किया। तीसरे और अंतिम दौरे के बाद 6 नामों का पैनल बनाकर केंद्रीय नेतृत्व को सौंपा जाएगा, जिसके बाद अनूपपुर को नया जिलाध्यक्ष मिलेगा। पर सवाल यह है कि क्या इन छह नामों में कोई एक ऐसा होगा जो कांग्रेस को जिलास्तर पर दिशा दे सके? या फिर वही पुराना समीकरण जिसे चुना जाएगा, बाक़ी उसके खिलाफ काम करेंगे।
नाम तो बहुत, पर नेतृत्व कहीं गुम
जिला अध्यक्ष पद के दावेदारों में आशीष त्रिपाठी, रमेश सिंह, रामखेलावन राठौर सहित दर्जनभर नाम चर्चा में हैं। लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं में यह आशंका है कि कहीं यह नियुक्ति भी गुटीय सौदेबाज़ी का शिकार न हो जाए। कांग्रेसी खेमें में अभी भी कई वरिष्ठ खुद को स्वाभाविक दावेदार मान रहे हैं, लेकिन युवाओं की नई पीढ़ी किसी ठोस और प्रभावी नेतृत्व की मांग कर रही है। आशीष त्रिपाठी युवा और ऊर्जावान चेहरा माने जाते हैं, जो लंबे समय से पार्टी के विभिन्न संगठनों में सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं। उनकी पकड़ खासकर युवा कार्यकर्ताओं और ब्लॉक स्तर के नेताओं में मजबूत मानी जाती है और वह संगठन को निचले स्तर तक सक्रिय करने की सोच के साथ अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। पार्टी के भीतर कई नेता उन्हें जिलाध्यक्ष पद के लिए एक संतुलित, सुलझा और रणनीतिक विकल्प मान रहे हैं, जो पुराने और नए दोनों वर्गों के बीच सेतु का काम कर सकते हैं।
कांग्रेस को चाहिए कप्तान, कैप्टन बनने की होड़ में उलझे खिलाड़ी
अनूपपुर में कांग्रेस संगठन की जो हालत
है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि दावेदार तो बहुत हैं, लेकिन विचारधारा और जमीन पर काम करने वाले गिने-चुने। पार्टी की हालत एक ऐसे जहाज की तरह है
जो बिना कप्तान के समुद्र में डगमगा रहा है और हर कोई पतवार पकड़ने को बेताब है,
चाहे दिशा पता हो या न हो। रमेश सिंह,
जो वर्तमान जिला कांग्रेस अध्यक्ष हैं, ने
बीते कार्यकाल में पार्टी को कई चुनावी चुनौतियों के बीच भी एकजुट बनाए रखने की
कोशिश की है। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि उनके नेतृत्व
में अपेक्षित उर्जा की कुछ कमी रही है, फिर
भी वरिष्ठता और
संगठन में पकड़ उन्हें
पुनः इस पद के लिए प्रबल दावेदार बनाती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आलाकमान नवाचार और
ऊर्जा को तरजीह देता है या अनुभव और स्थायित्व को। इस
समीकरण में रमेश सिंह का नाम बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
क्या सृजन या सिर्फ संशय?
आखिर में, पर्यवेक्षक
जगताप के इस सृजन अभियान का नतीजा कांग्रेस के लिए क्या लेकर आएगा, यह देखने वाली बात होगी। लेकिन फिलहाल तो अनूपपुर कांग्रेस एक
सवाल के घेरे में है कि जब पार्टी के अंदर ही पार्टी नहीं है,
तो संगठन कैसे बनेगा?
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